सन् 1955 ई. से
1960 ई. तक प्रकाशित कहानियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि
कहानियों का एक नया दौर शुरू हो गया था। इस दौर की कहानियाँ विषयवस्तु, रूपबंध, भाषा एवं
दृष्टिकोण में अपनी पूर्ववर्ती कहानियों से भिन्न है। अब तक जो कहानियाँ लिखी गई
थी उनमें कथातत्व की मौजूदगी होती थी इसी कथातत्व या आख्यान को हटाने का प्रयास ‘नई कहानी’ में किया गया
है जिससे कहानी में ‘कथानक का ह्रास’ होने लगा जिस पर नामवर सिंह का मत स्पष्ट है- ‘‘कि- कहानी में जो चीज पहले कथानक नाम से जानी
जाती थी,
उसमें कहीं-न-कहीं कोई मौलिक परिवर्तन हुआ है। इसे यों भी
कह सकते हैं कि कथानक की धारणा (कॉन्सेप्ट) बदल गई है, किसी समय मनोरंजक, नाटकीय और कौतूहलपूर्ण घटना-संघटना को ही कथानक समझा जाता था और आज घटना-संघटन
इतना विघटित हो गया है कि लोगों को अधिकांश कहानियों में कथानक नाम की चीज मिलती
ही नहीं। इसी को कुछ लोग ‘कथानक का ह्रास’ कहते हैं...।’’1
पुरानी कहानियों में समाज को कहीं अधिक महत्व दिया जाता था
और उस समाज में भी या तो निम्न वर्ग को अहमियत मिली या फिर उच्चवर्ग को मध्यवर्ग
को नहीं के बराबर। लेकिन 1950 के दशक में जो कहानियाँ लिखी जा रही थी उनमें एक नया मोड़
मिलता है इस मोड़ में शहरी मध्यवर्ग और उसके जीवन को कहानी के केन्द्र में दिखाया
गया है उसमें तनाव,
पीड़ा, वेदना उसी सोच
एवं जीवन मूल्यों को जीवन अनुभूतियों के साथ चित्रित किया गया है इसलिए घटनाओं एवं
चरित्रों की अपेक्षा स्थितियों एवं परिस्थितियों को अधिक महत्व मिलता है यही मोड़ ‘नई कहानी’ नाम से जाना
जाता है।
जिस पर कमलेश्वर ने अपना मत प्रकट किया है- ‘‘कथा साहित्य में इस बदलते हुए ‘एम्फेसिस’ (आग्रह) को
नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और यह बदला आग्रह ही उस बिंदु है जहाँ से कहानी मोड़
लेती है और वह मोड़ को ही ‘नयी कहानी’ के नाम से
अभिहित किया गया। रूढ़ियों को नकारते हुए ‘नयी कहानी’
ने अपनी खोज शुरू की थी। नयी कहानी विकास की प्रक्रिया से
गुजरती है जिसके वस्तु बीज प्रेमचन्द, प्रसाद और यशपाल में है।’’2
नई कहानियों का केन्द्र मुख्य रूप से स्वतंत्रता प्राप्ति
के साथ उभरा हुआ मध्यवर्ग नजर आता है और मध्यवर्ग में संयुक्त परिवारों के टूटने
के पश्चात् एकल परिवारों का गठन और एकल परिवारों में बढ़ती नारी की भूमिका एवं
स्वछन्द होने की प्रवृत्ति स्पष्ट दिखाई पड़ती है जिसका परिणाम स्त्री-पुरुषों के
सम्बन्धों एवं प्रेम में परिवर्तन दिखाई पड़ता है। स्त्रियों की भारतीय समाज में बदलती
इस भूमिका एवं स्वतन्त्र अस्तित्व की मांग को ‘नई कहानी’
के कहानीकारों ने बहुत प्रभावी ढंग से व्यक्त किया है
जिसमें प्रमुख कहानीकार एवं उनकी कहानियाँ इस प्रकार है- कमलेश्वर की ‘नीली झील’, राजा निरबंसिया’ एवं ‘खोई हुई
दिशाएँ’। मोहन राकेश की ‘पांचवे माले का प्लैट’,
‘सुहागिनें’, ‘एक
पंखयुक्त ट्रेजेडी’। मन्नू भण्डारी का ‘यही सच है’,
‘क्षय’, ‘ऊँचाई’, ‘बाहों का घेरा’, ‘नकली हीरे’
आदि, राजेन्द्र यादव की ‘टूटना’,
‘एक कमजोर लड़की’, ‘प्रतीक्षा’, निर्मल वर्मा की ‘अन्तर’,
‘परिन्दे’, उषा
प्रियंवदा की ‘कितना बड़ा झूठ’, ‘जिन्दगी और गुलाब के फूल’ आदि इन सब
कहानियों में मोटे तौर पर समाज में स्त्रियों की मनोदशा का स्वतन्त्र रूप से
चित्रण हुआ है। इसी मनोदशा को लेखक विविध माध्यमों से इशारा करके समझाने की कोशिश
करता है जिस पर नामवर सिंह कहते हैं- ‘‘इशारा एक दिशा की ओर या अनदेखी स्थिति की ओर। कहते हैं कि जब डॉक्टर को मर्ज
का पता नहीं चला तो एक प्रसिद्ध चित्रकार ने उसके पास अपना नग्न चित्र बनाकर एक
छोटा-सा धब्बा लगाते हुए इस नोट के साथ भेज दिया था कि यहाँ दुखता है। कहानी में
इतना-सा इशारा ही सोद्देश्यता है। दर्द से छटपटाते हुए जिस व्यक्ति अथवा समाज को
यह पता न हो कि दर्द कहाँ है और क्या है, उसके लिए उसकी दुखती रग पर हाथ रख देना भी बहुत बड़ी बात है।’’3
निर्मल वर्मा की प्रसिद्ध कहानी ‘परिन्दे’ जिसकी नायिका मिस
लतिका है जो कैप्टन नेगी से प्रेम करती है कैप्टन नेगी की ‘प्लेन क्रैश’ में मृत्यु हो जाती है मिस लतिका उन्हें भूलने की बजाए अपने अतीत एवं स्मृति
के साथ जीने को विवश हैं। ‘परिन्दे’ कहानी में
लतिका,
गिरीश, ह्यूबूर्ट, डॉ. मुखर्जी एवं जूली के माध्यम से युगीन सन्दर्भो में
प्रेम एवं सौन्दर्य की मूक अभिव्यक्ति का चित्रण हुआ है, लेखक ने प्रेम विषयक सुख एवं उससे उत्पन्न पीड़ा के महत्व को
स्वीकार किया है। इस कहानी में स्वतंत्रता की पुकार है, जिसके सम्बन्ध में नामवर सिंह अपनी पुस्तक में कहते हैं कि ‘‘परिन्दे की लतिका की समस्या स्वतंत्रता या मुक्ति की समस्या
है। अतीत से मुक्ति,
स्मृति से मुक्ति, उस चीज से मुक्ति जो हमें चलाए चलती है और अपने रेले में हमें घसीट ले जाती
है। इन कहानियों में प्रायः सभी व्यक्ति चरित्र अपने अतीत की स्मृति से मुक्त होने
के लिए प्रयत्नशील है।’’4
स्त्री-पुरुष संबंधों में बदलाव ‘नई कहानी’ का प्रमुख
स्वर है।
पहली बार नये कहानीकारों ने भूख और नींद की तरह सेक्स की
इच्छा को सहज और स्वाभाविक रूप से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है ये प्रेम के
जिस स्वरूप को लेकर उपस्थित होते हैं, वह अशरीरी प्रेम से दूर शरीर के धरातल पर आकर ग्रहण करता है इसलिये नयी कहानी
के नायक और नायिका पारंपरिक यौन-नैतिकता को ठुकराते हुए देह का विसर्जन करते देखे
जा सकते हैं। विवाहेत्तर सम्बन्ध नये कहानीकार के लिए अस्वीकार्य नहीं रह जाते।
ऐसी स्थिति में प्रेम त्रिकोण की समस्या, तीसरे की उपस्थिति और दाम्पत्य जीवन में तनाव व बिखराव स्त्री-पुरुष सम्बन्ध
की स्वाभाविक छवि है। मन्नू भण्डारी की कहानी ‘तीसरा आदमी’
में यह तीसरा स्त्री-पुरुष सम्बन्ध तनाव उत्पन्न करता हुआ
आता है तो मोहन राकेश के ‘एक और जिन्दगी’ में दाम्पत्य जीवन के बिखराव के कारण बच्चे के असुरक्षित भविष्य की ओर इशारा
किया गया है। स्पष्ट है कि नई कहानी के बंधन को भी बुरा या गलत बताने से परहेज
नहीं करती है। नई शिक्षा और आर्थिक स्वावलंबन ने उनमें (स्त्रियों) इतने
आत्मसम्मान-बोध और साहस को जन्म दिया जिसकी बदौलत वे पुरुषों के बिना भी नई
जिन्दगी की शुरूआत कर सकती हैं और नये जीवन को जी सकती हैं। जिस पर कमलेश्वर का मत
स्पष्ट है- ‘‘आधुनिक नारी अब अपनी पूरी गरिमा, देह सम्पदा और वास्तविक सम्मान के साथ आयी है। ‘यही सच है’, ‘मित्रो
मरजानी’,
‘लाल पराँदा’, ‘जिन्दगी और गुलाब के फूल’ आदि बहुत-सी
कहानियों की नारियाँ नितांत प्रामाणिक संदर्भों और जीवन प्रसंगों से जुड़ी हुई है, जो पुरुष के ‘माध्यम’
से जीवन मूल्यों या उसके अर्थों की खोज से तृप्त नहीं है, वे अपने पूरे व्यक्तित्व के साथ सह-योगी जीवन-पद्धति की
भागीदारी है,
या स्वयं जिम्मेदार।’’5
नई कहानी में अकेलापन नये कहानीकारों द्वारा प्रतिपादित
जीवन दर्शन है। यह अकेलापन राजेन्द्र यादव का ‘टूटना’
कहानी में तथा मन्नू भण्डारी की ‘अकेली’ कहानी में दृष्टव्य
होता है। इन सबमें मध्यवर्गीय जीवन की विसंगति और विडंबना को उद्घाटित करते हुए
अकेलेपन को जीवन-मूल्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है। जिस पर कमलेश्वर ने अपनी
पुस्तक ‘नयी कहानी की भूमिका’ में लिखा है- ‘‘अकेलापन जहाँ खोज के रूप में आया है या एक नयी रोमेंटिक
भंगिमा में,
वह साहित्यिक कृतित्व का अंग नहीं है। वह नकली और झूठा है।
पर अपनी वास्तविक स्थितियों, यथार्थ
परिस्थितियों,
वर्जनाओं, विघटनवादी
अंधड़ों और भ्रष्टाचार-जनित वातावरण में क्या कभी-कभी मनुष्य अकेला नहीं हुआ है? हमारे सामान्य जन का अकेलापन फालतू (सप्र्लस) होने की नियति
से उद्भूत है।’’6
नारी होने के कारण मन्नू भण्डारी ने अपनी कहानियों में
नारियों की संवेदनाओं और समस्याओं को बड़ी बारीकी से चित्रित करने का प्रयास किया
है। इसका प्रमाण यह है कि उनकी 48-50
कहानियों में से लगभग 38-40 कहानियों में नारी पात्रों की विशिष्ट भूमिकाएँ हैं। अपनी
कहानियों में मन्नू भण्डारी ने नारी को विभिन्न रूपों एवं परिस्थितियों में देखने
के साथ ही साथ नारी की समस्याओं को बड़े नजदीक से देखा और अनुभूत भी किया है इसलिए स्त्रियाँ
उनकी कहानियों के साथ जुड़ गई हैं। उन्होंने अपने कहानियों में स्त्री को विविध
रूपों में चित्रित किया है जो उनकी कहानियों में शिशु रूप में, युवती रूप में, प्रेमिका के रूप में,
माँ के रूप में, विद्यार्थी/छात्रा के रूप में एवं शिक्षिका के रूप में आदि जिसका प्रमाण हमें
निम्न पंक्तियों से चलता है- ‘‘मन्नू भण्डारी
शिक्षण-संस्थाओं से सम्बद्ध रही है तथा लेखकीय रूचि से सम्पन्न हैं। यही कारण है
कि उनके अधिकांश नारी-पात्र या तो पढ़ने-पढ़ाने वाले हैं या लेखक-व्यवसाय से संलग्न
है। उनकी कहानियों में ऐसे पात्रों की प्रमुखता है जैसे- ‘चश्में’ कहानी की मिस
वर्मा लेखिका हैं तथा ‘मैं हार गयी’ कहानी की ‘मैं’
भी लेखिका है तथा ‘यही सच है’
कहानी की दीपा शोध छात्रा है, ‘क्षय’
कहानी की कुन्ती एक अध्यापिका और ‘एखाने आकाश नाई’ की ‘लेखा’ कॉलेज की
प्राध्यापिका है।’’7
मन्नू भण्डारी के कथा साहित्य में नारी की भूमिका सर्वाधिक
महत्वपूर्ण है उनकी अधिकांश कहानियों के केन्द्र में कोई-न-कोई नारी अवश्य होती
है। नारी के विभिन्न रूपों और भावों को उन्होंने विभिन्न रूपों में चित्रित किया
है इसीलिए उनकी कहानियों में नारी के कई चित्र उपलब्ध होते हैं वह नारी किसी की
बेटी,
किसी की बहन, किसी की प्रेमिका,
पत्नी, माँ और न जाने
क्या-क्या होती है,
जो मन्नू जी की कहानियों में मार्मिक एवं ओजपूर्ण दिखती है।
मन्नू भण्डारी ने जहाँ अपनी कहानियों में बाहरी क्षेत्रों में काम करने वाली नारी
पात्रों की समस्याओं को चित्रित किया है तो वहीं दूसरी ओर शारीरिक श्रम में
कार्यरत महिलाओं की ओर भी सबका ध्यान आकर्षित किया है इसका उदाहरण ‘रानी माँ का चबूतरा’ कहानी में नजर आता है जहाँ ‘गुलाबी’ अपने शराबी पति से तंग आकर शारीरिक श्रम करने के लिए मजबूर
हो जाती है। इसी प्रकार ‘नशा’
कहानी की आनन्दी सिलाई करके अपना जीवन यापन करती है तथा
अपना पेट काट-काटकर अपने पति की शराब की इच्छा भी पूरी करती है।
‘क्षय’ कहानी में
कुन्ती एक बेटी और बहन का रूप निर्वाह करती है उसके सामने पेन्शन-भोगी पिता ‘क्षय’ की बीमारी से
ग्रस्त है दूसरी तरफ उसका छोटा-सा भाई है- टुन्नी। जिनकी देखभाल की जिम्मेदारी
कुन्ती पर है और वह परिश्रमपूर्वक करती भी है। पिता के अस्तित्व और छोटे भाई के
भविष्य के लिए वह अथक परिश्रम और संघर्ष करती है इतना ही नहीं बल्कि न चाहकर
ट्यूशन भी पढ़ाती है तथा पिता के कहने पर छोटे भाई को पास कराने की सिफारिश नहीं
करती है लेकिन ट्यूशन पढ़ाने वाले के लिए सिफारिश भी करनी पड़ती है। लेकिन इस हनन के
पीछे उसकी कोई भी निजी स्वार्थ भावना नहीं है बल्कि पिता और भाई के लिए उसके मन
में उत्कर्ष-भावना है। इस प्रकार स्त्री की मनोदशा एवं स्थिति का चित्रण मन्नू
भण्डारी ने बड़े मार्मिक और कौतुहलपूर्वक किया है।
इसी प्रकार ‘यही सच है’
कहानी की दीपा एक शोध-छात्रा है। दीपा अपने पिता के मृत्यु
के बाद स्वतन्त्र हो जाती है। सहपाठी मित्र निशीथ से अनबन हो जाने के कारण वह
शोध-कार्य करने के उद्देश्य से कानपुर आ जाती है जहाँ उसकी मित्रता संजय के साथ
होती है संजय एक नौकरी-पेशा पुरुष है। संजय के साथ रहने पर वह उसके प्रेम को सच
मानती है और निशीथ के साथ रहने पर निशीथ के प्रेम को। वह क्षणवादी जीवन दृष्टि में
विश्वास रखती है। जिसके सम्बन्ध में कपूरिया का मत है- ‘‘इस कहानी में मन्नू भण्डारी ने रोमानी, स्वप्निल, भावुकता-प्रधान
एवं अशरीरी प्रेम को वायवीय, अस्थायी तथा
अयथार्थ सिद्ध करते हुए उसके विपरीत व्यावहारिक अर्थात् क्रियात्मक (शारीरिक)
प्रेम के पक्ष का पोषण किया है। नायिका दीपा के माध्यम से संजय एवं निशीथ दो युवा
पुरुषों के प्रति युवा नारी-हृदय को संवेदनशीलता का सूक्ष्म एवं व्यापक चित्रण
कहानी में विद्यमान है।’’8
इस प्रकार मन्नू भण्डारी की कहानियाँ मध्यवर्गीय पात्रों के
माध्यम से प्रेम,
सेक्स, विवाह एवं
विच्छेद के प्रसंगों द्वारा व्यक्त हुई है ये सारी घटनाएँ नयी कहानी की पूरक हैं
अतः हम कह सकते हैं कि लेखकों ने ‘नई कहानी के माध्यम से हमारे समाज में स्त्रियों का दशा, स्त्री पुरुष संबधों में बदलाव तथा यथार्थता आदि प्रस्तुत
करने का प्रयास किया है और सफल भी हुए हैं जिसमें ‘परिन्दे’,
‘यही सच है’, ‘राजा निरबंसिया’ एवं ‘जहाँ लक्ष्मी
कैद है’
आदि कहानियों में देखा जा सकता है।
संदर्भ
1. ‘‘कहानी:
नयी कहानी’’-
नामवर सिंह, प्रकाशक- लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, पृष्ठ 14
2. ‘‘नयी
कहानी की भूमिका’’-
कमलेश्वर, प्रकाशक-
अक्षर प्रकाशन,
दिल्ली, पृष्ठ 40
3. ‘‘कहानी:
नयी कहानी’’-
नामवर सिंह, पृष्ठ 24
4. उपरोक्त, पृष्ठ 53
5. ‘‘नयी
कहानी की भूमिका’’-
कमलेश्वर, पृष्ठ 18-19
6. उपरोक्त, पृष्ठ 19
7. ‘‘मन्नू
भण्डारी की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ एक विवेचन’’- डॉ. कृष्ण देव शर्मा एवं डॉ. माया अग्रवाल, प्रकाशक- अनीता प्रकाशन, पृष्ठ 39
8. ‘‘हिन्दी
कहानी-साहित्य में प्रेम एवं सौन्दर्य-तत्व का निरुपण’’- डॉ. (श्रीमती) देव कपूरिया, प्रकाशक- आशा प्रकाशन,
पृष्ठ 323-324
सहचर , 12वें अंक में प्रकाशित
सहचर , 12वें अंक में प्रकाशित
लिंक -http://jankritipatrika.in/read.php?artID=518
ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह
ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह
शोधार्थी -हिंदी विभाग ,दिल्ली विश्वविद्यालय
पता – सी -195-196 द्वितीय तल, गाँधी विहार , दिल्ली
पिन न.– 110009, मो. न.- 8882898773
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