''रोल और रिस्पोंसिबिलिटी''
हमारी रोल और रिस्पोंसिबिलिटी कारण - कार्य सिद्धांत की तरह परस्पर हमारे जीवन विकास के साथ -साथ चलती है , एक ही समय हम किसी माता -पिता के पुत्र या पुत्री , किसी गुरु के शिष्य या शिष्या ,प्रतियोगिता के प्रतियोगी के साथ-साथ , मित्र के मित्र , शत्रु के शत्रु , प्रेमिका के प्रेमी या प्रेमी की प्रेमिका , बहन के भाई , भाई के बहन ,पति की पत्नी ,पत्नी का पति ,कमाऊ ,शोधार्थी,बेरोजगार,किरायेदार ,उधार ,गँवार ,बेकार ,लाचार ,शर्मसार,चापलूस ,तिकड़मी...... आदि भूमिकाओं में होते हैं और इन भूमिकाओं में हमें अपनी रिस्पोंसिबिलिटी निभानी होती है और इसमें सफल वही होता है जो अपने रोल के अनुसार अपने जीवन के कमान को कसता अथवा ढीला छोड़ता है ,हाँ ! एक बात ज़रूर है कि हमारी भावनायें इसमें बडी बाधा उत्पंन करती हैं लेकिन हमें भी इन बातों का ध्यान रखना है कि हमारे हाथ में ही हमारी जीवन-यात्रा की लगाम है इसलिये कब इसे कसना है और कब इसे ढीला छोड़ना है इसका ख़याल हमें होना चाहिये ।
"और हमारा रिस्पॉसिबल (अपने रोल के अनुसार )होना उतना ही ज़रूरी है जितना की पुष्प का खिलना और सूरज का उगना ।"
ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह
शोधार्थी -हिंदी विभाग ,दिल्ली विश्वविद्यालय
पता – सी -195-196 द्वितीय तल, गाँधी विहार , दिल्ली
पिन न.– 110009, मो. न.- 8882898773
Email : gyanendra0793@gmail.com
This comment has been removed by the author.
ReplyDelete