*बेचैन संतुलन*
प्रेम का अतियथार्थवाद वह है ,
जो बरबस जीवन में फूट पड़ता है ।
लेकिन जीवन इसका कायल नहीं है...
एक तरफ अपने को वायवी बनाकर असंभव - सी लगने वाली ऊँचाई को छू लेने का अदम्य उत्साह है ,
दूसरी तरफ अपने को पत्थर की तरह ठोस बनाकर उमड़ती हुई वायवीयता को दबा देने की कोशिश ।
इन दोनों हाशियों के बीच प्रेम एक व्याकुल शांति की तरह स्थिर है ।
मूलतः वह ,
जिसे हम प्रेम कहते हैं ,
दो अतियों अथवा सीमांतों के बीच गति और प्रतिगति का एक झीना , झिलमिलाता हुआ
बेचैन संतुलन है ।
लेकिन इस बेचैनी का अपना ही मजा है ...
© ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह
प्रेम का अतियथार्थवाद वह है ,
जो बरबस जीवन में फूट पड़ता है ।
लेकिन जीवन इसका कायल नहीं है...
एक तरफ अपने को वायवी बनाकर असंभव - सी लगने वाली ऊँचाई को छू लेने का अदम्य उत्साह है ,
दूसरी तरफ अपने को पत्थर की तरह ठोस बनाकर उमड़ती हुई वायवीयता को दबा देने की कोशिश ।
इन दोनों हाशियों के बीच प्रेम एक व्याकुल शांति की तरह स्थिर है ।
मूलतः वह ,
जिसे हम प्रेम कहते हैं ,
दो अतियों अथवा सीमांतों के बीच गति और प्रतिगति का एक झीना , झिलमिलाता हुआ
बेचैन संतुलन है ।
लेकिन इस बेचैनी का अपना ही मजा है ...
© ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह
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